तो ऐसी थी आज़ादी के बाद हमारी रेलवेज .....

आज़ाद भारत की रेलवेज.....#1947RAILWAYS..

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ऐसे तो भारत में पहली ट्रैन १६ अप्रैल १८५३ के दिन चली.यह ट्रैन २० डब्बे की थी और उसमे सिर्फ ४०० आमंत्रित महेमानो को याने की पैसंजर को ही बैठे थे यह ट्रैन मुंबई से पुणे का सिर्फ ३३ किलोमीटर का अंतर करीबन ७५ मिनट में तय किया था हालांकि उसमे सुल्तान सिंध और साहेब नामके तीन तीन इंजन भी जोड़े थे.
इस दिन के बाद करीबन ९४ साल बाद अंग्रेज भारत छोड़ के भागे थे.तब तक इंडियन रेलवेज का नेटवर्क बहुत विचित्र बन चूका था.१९४७ से पहले रेलवे लाइन करीबन ६५,००० किलोमीटर लम्बी थी.उसमे से २३००० किलोमीटर लाइन पाकिस्तान के हिस्से में गई.और हमारे पास ४१,००० किलोमीटर की लाइन बच गई.

उस ज़माने में आज के जैसा नहीं था की रेलवे सिर्फ गोवेर्मेंट प्रॉपर्टी है लेकिन तब रेलवेज प्राइवेट भी होती थी जैसे की प्राइवेट और हमारे देसी राजा के पास रेलवे के करीबन ३० यूनिट थे.जिसमे से ग्रेट इंडियन पेन्नीसुलला
(GIP) की रेलवे ५००० किलोमीटर की थी और बॉम्बे बरोदा सेंट्रल रेलवे के पास ५४५० किलोमीटर लम्बी रेलवे लाइन थी!!. आपको जान के ताज्जुब होगा की हैदराबाद के निज़ाम के पास उस ज़माने में अपनी प्राइवेट २१०० किलोमीटर लम्बी रेलवे थी जो उनके  अपने प्राइवेट उपयोग के लिए थी. इतना ही नहीं जोधपुर के राजा के पास भी १२०० किलोमीटर लम्बी लाइन थी.सभी राजा और निज़ाम अपनी रेलवेज को अपना सिंबल भी मानते थे.महाराष्ट्र के सांगली में सिफर ६ किलोमीटर लम्बी लाइन थी.

   GIP रेलवेज के पास एक विशेषता थी की वह कंपनी हर शनि रवि मुंबई से पुणे "पूना रेसेस" नामसे स्पेशल ट्रैन  चलती थी.उस समय पुणे में
हॉर्स रेसिंग होती थी तो सभी जुवारी उसी ट्रैन से पुणे जाते थे.बाकायदा उसने अपना पोस्टर भी जारी किया था जिसमे फर्स्ट क्लास सुविधाए थी.



उस वक्त मेल ट्रैन में  १ किलोमीटर का ५ रुप्पे थे.थर्ड क्लास के १ रुप्पे.और चार लोग की फॅमिली के लिए बाकायदा एक अलग रॉयल कोच होता था .इस फोटो में आप उस ज़माने का  मुख्य टर्मिनस "चर्चगेट" देख सकते है.जो  आपको एक एक मामूली बिल्डिंग जैसा लगेगा...


तो ऐसी थी आज़ादी के बाद हमारी रेलवेज .....

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